रोज़मर्रा वही इक ख़बर
रोज़मर्रा वही इक ख़बर देखिए
अब तो पत्थर हुआ काँचघर देखिए।
सड़कें चलने लगीं आदमी रुक गया
हो गया यों अपाहिज सफ़र देखिए।
सारा आकाश अब इनके सीने में है
काटकर इन परिंदों के पर देखिए।
मैं हक़ीक़त न कह दूँ कही आपसे
मुझको खाता है हरदम ये डर देखिए।
धूप आती है इनमें, न ठंडी हवा
खिड़कियाँ हो गईं बेअसर देखिए।
७ सितंबर २००९ |