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अनुभूति में डॉ. अश्वघोष की रचनाएँ

अंजुमन में-
जो भी सपना
रफ़्ता रफ़्ता
रोज़मर्रा
सिलसिला ये दोस्ती का

छंदमुक्त में-
अभी तो लड़ना है
आज भी
शब्दों की किरचें
सड़क पर तारकोल
सदियों से भूखी औरत
सोच रहा है दिन

गीतों में—
जल नहीं है
तुमसे मिलके
लाजवंती धारणाएँ
संसद के गलियारे

संकलन में-
हिंदी की 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेम कविताएँ- नए साल में

 

जो भी सपना

जो भी सपना तेरे-मेरे दरमियाँ रह जाएगा
बस वही इस ज़िंदगी का दास्ताँ रह जाएगा।

कट गए हैं हाथ तो आवाज़ से पथराव कर
याद सबको यार मेरे ये समाँ रह जाएगा।

भूख है तो भूख का चर्चा भी होना चाहिए
वरना घुटकर सबके मन में ये धुआँ रह जाएगा।

ये धुँधलके हैं समय के, सोचकर परवाज़ कर
यों ही बादल फट गया गर, तू कहाँ रह जाएगा।

जो भी पूछे तो अदालत, बोल देना बेझिझक
तू न रह गया तो क्या, तेरा बयाँ रह जाएगा।

७ सितंबर २००९

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