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अनुभूति में अनूप अशेष की कविताएँ-

नए गीत-
आवाजों के खो जाने का दुख कितना
इतने बरसों बाद

एक चिड़िया आई
दस देहों की गंध
नदी बाढ़ के
परछाईं मछली की
बानी माँग रहे
सपने का झुनझुना
सीढ़ी लगे उतरने
हरी घास पीली दूबों पर

गीतों में-
दिन चार ये रहें
दुख पिता की तरह
पत्तियों जैसा झरा
मकड़ी के जाले

संकलन में-
वसंती हवा – देह का संगीत
धूप के पाँव– कोई चिड़िया नहीं बोलती

दोहों में-
फागुनी दोहे

 

फागुनी दोहे

घेर रही है दिन उगे, अलसायी-सी बाँह।
जैसे आई धूप हो, गुलमोहर की छाँह।।

ओंठों लाली पान की, सांसों केसर रंग।
बेल पत्र पर हैं लिखे, भीतर के अनुबंध।।

पिया हाथ अंजुरी जुड़ी, ज्यों केवड़े का फूल।
भाग जुड़े दिन मोह के, पग पग महकी धूल।।

कनुप्रिया की गोद में, कालिंदी तट धूप।
सरसों मल कर आएगा, श्याम रंग में भूप।।

आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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