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अनुभूति में अनूप अशेष की कविताएँ-

नए गीत-
आवाजों के खो जाने का दुख कितना
इतने बरसों बाद

एक चिड़िया आई
दस देहों की गंध
नदी बाढ़ के
परछाईं मछली की
बानी माँग रहे
सपने का झुनझुना
सीढ़ी लगे उतरने
हरी घास पीली दूबों पर

गीतों में-
दिन चार ये रहें
दुख पिता की तरह
पत्तियों जैसा झरा
मकड़ी के जाले

संकलन में-
वसंती हवा – देह का संगीत
धूप के पाँव– कोई चिड़िया नहीं बोलती

दोहों में-
फागुनी दोहे

 

 

दिन-चार ये रहें

दोपहर कछार में रहें
दिन मेरे चार ये रहें।

महुआ की कूँचों से
गेहूँ की बाली तक,
शाम की महकती
करौंदे की डाली तक।
आँगन कचनार के रहें
दिन मेरे चार ये रहें।

सारस के जोड़े
डोलें अपने खेत में,
हंसिए के पाँवों
उपटे निशान रेत में।
बाँहें आभार को गहें
दिन मेरे चार ये रहें।।

छोटी-सी दुनिया
दो-पाँवों का खेलना,
गमछे में धूल भरे
अगिहाने झेलना।
पुटकी को प्यार से गहें
दिन मेरे चार ये रहें।।

१६ अप्रैल २००५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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