धूप के पाँव

 

कोई चिड़िया नहीं बोलती 

अनूप अशेष  

 

ईंट–पत्थरों की जुबान है
ऊँचे बड़े मकानों में
कोई चिड़िया नहीं बोलती
सूने रोशनदानों में।

कुछ छीटें मेरी यादों के
कुछ धब्बे सबके
धूप–छाँह
हो जाने वाले
रिश्ते हैं अब के,
आँगन वाली गंध नहीं हैं
धूप भरी
दालानों में

आँखों का पानी खोने का
भीतर खेद नहीं
शीशे की खिड़की
के बाहर
उछली गेंद नहीं,
तपता–सा एहसास जेब का
उँगली की
पहचानों में

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