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अनुभूति में अनिरुद्ध नीरव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
एक एक बाल पर
गंध गीत
गोरस की मटकी
घोड़ा थका हुआ
बीत गए
वक्र रेखाएँ

गीतों में-
जंगल में रात
भोर
दोपहर
पात झरे हैं सिर्फ़
बच्चा कहाँ खेले
रात
संध्या

 

 

बीत गए

तितलियाँ पकड़ने के दिन,
बीत गए मरु की यात्राओं में।

क्या होगा अब कोई
छींटदार पंख लिये।
आँगन की थाली में
व्योम का मयंक लिये।

बिजलियाँ जकड़ने के दिन
बीत गए तम की व्याख्याओं में।

नाज पलीं त्रासदियाँ
प्यास पली लाड़ से,
फिर भी खारी नदिया
स्वप्न के पहाड़ से।

झील में लहरने के दिन,
बीत गए तट की चिंताओं में।

काफी था एक गीत
एक उम्र के लिए,
लगता है व्यर्थ जिए
पी-पीकर काफिए।

शब्द से उतरने के दिन,
बीत गए व्योम की कथाओं में।

११ नवंबर २०१३

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