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अनुभूति में अनिरुद्ध नीरव की रचनाएँ-

नये गीतों में-
एक एक बाल पर
गंध गीत
गोरस की मटकी
घोड़ा थका हुआ
वक्र रेखाएँ

गीतों में-
जंगल में रात
भोर
दोपहर
पात झरे हैं सिर्फ़
बच्चा कहाँ खेले
रात
संध्या

 

गोरस की मटकी

तन-मन में
भर गया हुलास,
गोरस की मटकी में
घुल गया पलाश।

लहराया
छरहरा बदन
सूने आँगन में,
लहराए,
हवा संग जैसे
निर्जन वासंतिया विजन में।
वन फूलों की
कच्ची कुँआरी सुवास।

हृदय लगा
अनबाँचा पत्र
कसमसाए,
ज्यों कोई सुगना
संदेश लिये
छाती पर पंख फड़फड़ाए।

पंक्ति-पंक्ति
उफनती नदी का एहसास।

११ नवंबर २०१३

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