अनुभूति में
अनिरुद्ध नीरव की
रचनाएँ- नये गीतों में-
एक एक बाल पर
गंध गीत
गोरस की मटकी
घोड़ा थका हुआ
वक्र रेखाएँ
गीतों में-
जंगल में रात
भोर
दोपहर
पात झरे हैं सिर्फ़
बच्चा कहाँ खेले
रात
संध्या |
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जंगल में रात
जंगल में रात
और धाँय धाँय गोलियाँ
कौन सुनें
चीख भरी चिड़ियों की बोलियाँ।
जंगल जो था
झँगुर गान से पगा हुआ।
रह गया अचानक
ठिठका ठगा ठगा हुआ।
एक परत भय की
ऊपर जमी फुनगियों पर
नीचे कुछ रक्त की रंगोलियाँ।
नन्हे वन-ग्राम चकित
सूखे पत्तों जैसे काँपते।
साँस टँगी है, लेकिन कान खड़े
खून भरी आँधी को नापते।
ढिबरी गुल द्वार बंद
माताएँ अड़ा रहीं
बच्चों के मुख पर हथेलियाँ।
पहले तो पशु
आदमखोर हुआ करता था।
बस्ती में घुसते ही
शोर हुआ करता था।
अब तो कुछ आदम ही
यूँ आदमखोर हुए
हतप्रभ हैं पशुओं की टोलियाँ।
जंगल में रात
और धाँय धाँय गोलियाँ।
२२
जून २००९ |