अनुभूति में
अनिरुद्ध नीरव की
रचनाएँ- नये गीतों में-
एक एक बाल पर
गंध गीत
गोरस की मटकी
घोड़ा थका हुआ
वक्र रेखाएँ
गीतों में-
जंगल में रात
भोर
दोपहर
पात झरे हैं सिर्फ़
बच्चा कहाँ खेले
रात
संध्या
|
|
दोपहर
वन फूलों की
कच्ची क्वांरी खुशबू
ललछौहें पत्तों का प्यार लो,
जंगल का इतना सत्कार लो।
कुंजों में इठलाकर,
लतरों में झूलकर
जी लो
विषवन्त महानगरों को
भूलकर
बाहों में भर लो ये साँवले तने,
पांवों में दूब का दुलार लो।
घुटनों बैठे पत्थर
डालियाँ प्रणाम सी,
दिगविजयी अहमों पर
व्यंग्य सी विराम सी
झुक झुक स्वीकारो यह गूंजता विनय
चिड़ियों का मंगल आभार लो।
झरने के पानी में
दोनों पग डालकर
कोलाहल
धूल धुआँ त्रासदी
खंगाल कर
देखों लहरों की कत्थक मुद्राएँ
अंजुरी में फेनिल उपहार लो।
पगडन्डी ने पी है
पैरी की वारुणी,
कोयल ने
आमों की कैरी की वारुणी।
तुम पर भी गहराया दर्द का नशा
हिरनी की आंख का उतार लो।
२२
जून २००९ |