यायावर जैसा जीवन
जीते हैं
भटकन मेँ अब तक सब दिन जीते हैं
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
जयमाला लिए खड़ी
होगी मंज़िल
उस क्षण हम रेगिस्तानों में होंगे
उत्सव जब हमको ढूँढ रहा होगा
हम आंधी के यजमानों में होंगे
अब एक असंगति हो
तो कह डालें
जो हमें मिले वे सब घट रीते हैं
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
वैसे प्यासों के
फूल बताशे हैं
पर स्वयं जन्म से ही हम प्यासे हैं
यों धुआँ-धुआँ अस्तित्व किए फिरते
लेकिन दुनिया के लिये तमाशे हैं
सागर से सूरज
जितना ला देता
बस उतना खारा जल हम पीते हैं
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
जब बहुत विकल
होकर हम रो देते
पर्वत तक पर नंदन वन बो देते
मिल जाए जग को सावन का मौसम
बन बूँद-बूँद हम सब कुछ खो देते
बन गए डाकिये
यक्ष प्रिया के भी
दुनिया को हमसे बड़े सुभीते हैं
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
४ मई २००९ |