कुछ तो होना ही था
कुछ तो होना ही
था आखिर मेरे सपनों का
या तो ये सच ही हो जाते या फिर टूट गए
टूटे सम्बन्धों
को चाहा लेकिन नहीं जुड़े
वन को जाते राम कि जैसे वापस नहीं मुड़े
सुन रे मन इसमें कोई अनहोनी बात नहीं
पंखहीन थे पंछी इच्छाओं के नहीं उड़े
कुछ तो होना ही
था आखिर मेरे अपनों का
या तो ये खुश ही हो जाते या फिर रूठ गए
आँखों से शबनम
जन्मी पर मौसम वही रहा
सूरज जैसा तपा मगर तम का आरोप सहा
वैसे मन के सागर में दिन रात ज्वार उठते
पर पीड़ा का शिलाखंड तो तिल भर नहीं बहा
कुछ तो होना ही
था आखिर कल्पित रत्नों का
या तो ये अंजलि में आते या फिर छूट गए
इस युग में भी
संवेदन से रीत नहीं पाया
किसी पराजित प्रतियोगी को जीत नहीं पाया
आशा तो कर में जयमाल लिये थी पर मैंने
उत्सव में सम्मोहन वाला गीत नहीं गाया
कुछ तो होना ही
था आखिर भावुक वचनों का
दृग से बहते या तो फिर अधरों से फूट गए
४ मई २००९ |