तम का पीना आसान
नहीं होता
नेह आग के चरणों
पर
धर देना पड़ता है
सुन री रजनी तम का पीना
आसान नहीं होता
स्वर्ण सरीखी देह
धुएँ का
मोरमुकुट पहिने
तिल-तिल कर जलने वाले
क्षण हैं मेरे गहने
पुनर्जन्म जब तक
सूरज का
निश्चित नहीं लगे
नत शिर होकर व्यंग मुझे
झंझाओं के सहने
देख आग को
चंदन-सा
कर लेना पड़ता है
सुन री रजनी हँसकर जीना
आसान नहीं होता
कुटिया हो या महल
मुझे तो सीमा में रहना
सबको नींद दिलाने वाली
ज्योति कथा कहना
रामचन्द्र को सिया मिली औ
मिले अवध को राम
इसी खुशी में मुझे वंश के
साथ पड़ा दहना
बुझ-बुझ कर हर
रोज जन्म
फिर लेना पड़ता है
सुन री रजनी मरकर जीना
आसान नहीं होता
मेरा तो उद्देश्य
अंधेरे से
केवल लड़ना
सुप्त विश्व के माथे पर फिर
एक भोर जड़ना
दिनकर भी जब ओढ़ पराजय
गत हो जाता है
ऐसे कठिन समय में फिर
इतिहास नया गढ़ना
जड़ माटी में
संवेदन
भर देना पड़ता है
सुन री रजनी दीपक बनना
आसान नहीं होता
४ मई २००९ |