अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आनंद शर्मा की रचनाएँ—

नए गीतों में-
कुछ तो होना ही था

तम का पीना आसान नहीं होता
यायावर जैसा जीवन जीते हैं
यह अँधेरा तो नया बिलकुल नया है
यह नगर व्यापारियों का है

गीतों में-
गंगाजल वाले कलश
मेरे मन के ताल में

  गंगाजल वाले कलश

गंगाजल वाले कलश नहीं हो तुम,
हाँ महासिंधु होगे खारे जल के।

ये अधर हमारे रेगिस्तानी हैं।
पर रामानुज जैसे अभिमानी हैं।
ओ क्रुद्ध परशुधर तुमसे ही हमको,
सारी भूलें स्वीकार करानी हैं।
गंभीर नहीं तुम नीली झीलों से,
आधे जल वाली गागर से छलके।

कंधों पर यात्रा हमें नहीं करनी।
अपनी झमता से वैतरणी तरनी।
वंचित रहना स्वीकार हमें लेकिन,
भिक्षा के यश से गोद नहीं भरनी।
तुम कल्पमेघ तो हमको नहीं लगे,
गर्जन वाले बस बादल हो हलके।

तुम आयोजक आंधी तुफ़ानों के।
हम सहज सरल नाविक जलयानों के।
हर भँवर फँसी पीढ़ी दुहरायेगी,
आख्यान हमारे ही अभियानों के।
जब-जब भी जलते अधरों पर साधे,
मायावी ओस कणों से तुम ढलके।

हाँ महासिंधु होगे खारे जल के।

१ अप्रैल २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter