अनुभूति में
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
की रचनाएँ-
मुक्तक में-
माँ के प्रति
चौपदों में-
माँ को अर्पित चौपदे
नये गीतों में-
इसरो को शाबाशी
कोशिश करते रहिये
चूहा झाँक रहा हाँडी में
जो नहीं हासिल
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं
शहर में मुखिया आए
नए दोहे-
प्रकृति के दोहे
नए गीतों में-
कब होंगे आज़ाद हम
झुलस रहा है गाँव
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मत हो राम अधीर
हाइकु में-
हाइकु गज़ल
गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
चुप न रहें
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर
सूरज ने भेजी है
दोहों में-
फागुनी दोहे
संकलन में-
मातृभाषा के प्रति-
अपना हर
पल है हिंदीमय |
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माँ के प्रति
अक्षरों ने तुम्हें ही किया है नमन
शब्द ममता का करते रहे आचमन
वाक्य वात्सल्य पाकर मुखर हो उठे-
हर अनुच्छेद स्नेहिल हुआ अंजुमन
गीत के बंद में छंद लोरी मृदुल
और मुखड़ा तुम्हारा ही आँचल धवल
हर अलंकार माथे की बिंदी हुआ-
रस भजन-भाव जैसे लिये चिर नवल
ले अधर से हँसी मुक्त मुक्तक हँसा
मौन दोहा हृदय-स्मृति ले बसा
गीत की प्रीत पावन धरोहर हुई-
मुक्तिका ने विमोहा भुजा में गसा
लय विलय हो तुम्हीं सी सभी में दिखी
भोर से रात तक गति रही अनदिखी
यति कहाँ कब रही कौन कैसे कहे-
पीर ने धीर धर लघुकथा नित लिखी
लिपि पिता, पृष्ठ तुम, है समीक्षा बहन
थिर कथानक अनुज, कथ्य तुमको नमन
रुक! सखा चिन्ह कहते- 'न संजीव थक'
स्नेह माँ की विरासत हुलस कर ग्रहण
साधना माँ की पूनम बने रात हर
वन्दना ओम नादित रहे हर प्रहर
प्रार्थना हो कृपा नित्य हनुमान की
अर्चना कृष्ण गुंजित करें वेणु-स्वर
माँ थी पुष्पा चमन, माँ थी आशा-किरण
माँ की सुषमा थी राजीव सी आमरण
माँ के माथे पे बिंदी रही सूर्य सी-
माँ ही जीवन में जीवन का है अवतरण
१५ सितंबर २०१६ |