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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नये गीतों में-
इसरो को शाबाशी
कोशिश करते रहिये
चूहा झाँक रहा हाँडी में
जो नहीं हासिल
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं
शहर में मुखिया आए

नए दोहे-
प्रकृति के दोहे

नए गीतों में-
कब होंगे आज़ाद हम
झुलस रहा है गाँव
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मत हो राम अधीर

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
चुप न रहें
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

संकलन में-
मातृभाषा के प्रति- अपना हर पल है हिंदीमय

 

 

शहर में मुखिया आए

शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आए

जन-गण को कर दूर निकट नेता-अधिकारी
इन्हें बनायें सूर छिपाकर कमियाँ सारी
सबकी कोशिश करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये

है सच का आभास कर रहे वादे झूठे
करते यही प्रयास वोट जन गण से लूटें
लोकतंत्र की लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये

आए-गये अखबार रँगे, रेला-रैली में
शामिल थे बटमार कर्म-चादर मैली में
अंधे देखें, बहरे सुन,
गूँगे बोलें
हम चुप रह जाएँ

३ नवंबर २०१४

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