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अनुभूति में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की रचनाएँ-

नये गीतों में-
इसरो को शाबाशी
कोशिश करते रहिये
चूहा झाँक रहा हाँडी में
जो नहीं हासिल
पीढ़ियाँ अक्षम हुई हैं
शहर में मुखिया आए

नए दोहे-
प्रकृति के दोहे

नए गीतों में-
कब होंगे आज़ाद हम
झुलस रहा है गाँव
बरसो राम धड़ाके से
भाषा तो प्रवहित सलिला है
मत हो राम अधीर

हाइकु में-
हाइकु गज़ल

गीतों में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
चुप न रहें
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर

सूरज ने भेजी है

दोहों में-
फागुनी दोहे

संकलन में-
मातृभाषा के प्रति- अपना हर पल है हिंदीमय

 

कोशिश करते रहिये

कोशिश करते रहिए,
निश्चय मंज़िल मिल जाएगी

जिन्हें भरोसा है अतीत पर
नहीं आज से नाता
ऐसों के पग नीचे से
आधार सरक ही जाता
कुंवर, जमाई या माता से
सदा राज कब चलता?
कोष विदेशी बैंकों का
कब काम कष्ट में आता

हवस आसुरी
वृत्ति तजें
तब आशा फल पायेगी

जिसने बाजी जीती उसको
मिली चुनौती भारी
जनसेवा का समर जीतने की
अब हो तैयारी
सत्ता करती भ्रष्ट, सदा ही
पथ से भटकाती है
अपने हों अपनों के दुश्मन
चला शीश पर आरी

सम्हलो
करो सुनिश्चित
फूट न आपस में आएगी

जीत रहे अंतर्विरोध पर
बाहर शत्रु खड़े हैं
खुद अंधे हों काना करने
हमें ससैन्य अड़े हैं
हैं हिस्सा इस महादेश का
फिर से उन्हें मिलाना
महासमर ही चाहे हमको
बरबस पड़े रचाना

वेणु कृष्ण की
तब गूँजेगी
शांति तभी आएगी

३ नवंबर २०१४

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