अनुभूति में
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
आँखें रहते सूर हो गए
अपने सपने
चुप न रहें
मीत तुम्हारी राह हेरता
मौन रो रही कोयल
संध्या के माथे पर
गीतों में-
ओढ़ कुहासे की चादर
कागा आया है
पूनम से आमंत्रण
मगरमचछ सरपंच
सूरज ने भेजी है
दोहों में-
फागुनी दोहे |
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अपने सपने
अपने
सपने कर नीलाम
औरों के कुछ आएँ काम
1
तजें
अयोध्या अपने हित की
गहें राह चुप सबके हित की
लोक हितों की कैकेयी अनुकूल
न अब हो वाम
1
लोक-
नीति की रामदुलारी
परित्यक्ता जनमत की मारी
वैश्वीकरण रजक मतिहीन
बने-बिगाड़े काम
1
जनमत-
बेपेंदी का लोटा
सत्य-समझ का हरदम टोटा
मन न देखता देख रहा है
'सलिल' चमकता चाम...
१९ अप्रैल २००९ |