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अन्य छंदों में-
नहान
गंगा

द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्
मैं नहीं चाहता चिर सुख

गीतों में-
तप रे मधुर मधुर मन
भारतमाता ग्रामवासिनी
मोह
मौन निमंत्रण
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छंदमुक्त में-
पाषाण खंड

जीना अपने ही में

संकलन में-
वसंती हवा- वसंत
वर्षा मंगल - पर्वत प्रदेश में पावस
मेरा भारत- १५ अगस्त १९४७
ज्योति पर्व- बाल प्रश्न
तुम्हें नमन- बापू के प्रति

 

मौन निमंत्रण

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार
चकित रहता शिशु-सा नादान
विश्व की पलकों पर सुकुमार
विचरते हैं जब स्वप्न अजान,
न जाने, नक्षत्रों से कौन
निमंत्रण देता मुझको मौन!

सघन मेघों का भीमाकाश
गरजता है जब तमसाकार
दीर्घ भरता समीर निःश्वास
प्रखर झरती जब पावस धार
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन!

देख वसुधा का यौवन भार
गूँज उठता है जब मधुमास
विधुर उर के-से मृदु उद्गार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्‌वास
न जाने, सौरभ के मिस कौन
संदेशा मुझे भेजता मौन!

क्षुब्ध जल शिखरों का जब वात
सिंधु में मथकर फेनाकार
बुलबुलों का व्याकुल संसार
बना बिथुरा देती अज्ञात
उठा तब लहरों से कर कौन
न जाने, मुझे बुलाता मौन!

स्वर्ण, सुख, श्री, सौरभ में भोर
विश्व को देती है जब बोर
विहग-कुल की कल कंठ हिलोर
मिला देती भू-नभ के छोर
न जाने, अलस पलक दल कौन
खोल देता तब मेरे मौन!

तुमुल तम में जब एकाकार
ऊँघता एक साथ संसार
भीरु झींगुर कुल की झनकार
कँपा देती तंद्रा के तार
न जाने, खद्योतों से कौन
मुझे पथ दिखलाता तब मौन!

कनक छाया में, जब कि सकाल
खोलती कलिका उर के द्वार
सुरभि पीड़ित मधुपों के बाल
तड़प, बन जाते हैं गुंजार
न जाने, ढुलक ओस में कौन
खींच लेता मेरे दृग मौन!

बिछा कार्यों का गुरुतर भार
दिवस को दे सुवर्ण अवसान
शून्य शय्या में, श्रमित अपार
जुड़ाती जब मैं आकुल प्राण
न जाने मुझे स्वप्न में कौन
फिराता छाया जग में मौन!

न जाने कौन, अये छविमान!
जान मुझको अबोध, अज्ञान
सुझाते हो तुम पथ अनजान
फूँक देते छिद्रों में गान
अहे सुख-दुख के सहचर मौन!
नहीं कह सकती तुम हो कौन!!

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