दीप तेरा दामिनी
दीप तेरा दामिनी
चपल चितवन ताल पर बुझ बुझ जला री मानिनी।
गंधवाही
गहन कुंतल
तूल से मृदु धूम श्यामल
घुल रही इसमें अमा ले आज पावस यामिनी।
इंद्रधनुषी चीर हिल हिल
छाँह सा मिल धूप सा खिल
पुलक से भर भर चला नभ की समाधि विरागिनी।
कर गई
जब दृष्टि उन्मन
तरल सोने में घुला कण
छू गई क्षण-भर धरा-नभ सजल दीपक रागिनी।
तोलते
कुरबक सलिल-घन
कंटकित है नीप का तन
उड़ चली बक पाँत तेरी चरण-ध्वनि-अनुसारिणी।
कर न तू
मंजीर का स्वन
अलस पग धर सँभल गिन गिन
है अभी झपकी सजनि सुधि विकल क्रंदनकारिणी।
9
नवंबर 2007 |