अधिकार
वे मुसकाते फूल नहीं -
जिनको आता है मुरझाना
वे तारों के दीप नहीं -
जिनको आता है बुझ जाना।
वे नीलम के मेघ नहीं -
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनंत ऋतुराज नहीं -
जिसने देखी जाने की राह
वे सूने से नयन, नहीं -
जिनमें बनते आंसू मोती
वह प्राणों की सेज, नहीं -
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती।
ऐसा तेरा लोक वेदना-
नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं -
जिसने जाना मिटने का स्वाद।
क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव ! अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार।
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