दीप सी मैं
धूप सा तन दीप सी मैं!
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा
में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-साँसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं!
सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा
के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रांत आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छाँह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूँगी सीप सी मैं!
धूप-सा तन दीप सी मैं!
9
नवंबर 2007 |