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अनुभूति में महादेवी वर्मा की रचनाएँ-

दीप-गीतों में-
क्या जलने की रीत
क्या न तुमने दीप बाला

किसी का दीप निष्ठुर हूँ
जब यह दीप थके तब आना
जीवन दीप
तम में बनकर दीप
दीप
दीप कहीं सोता है
दीप जगा ले
दीप तेरा दामिनी
दीप मन
दीप मेरे जल अकंपित
दीप सी मैं
दीपक अब रजनी जाती रे
दीपक चितेरा
दीपक पर पतंग
बुझे दीपक जला लूँ
मेरे दीपक
यह मंदिर का दीप
सजनि दीपक बार ले

अन्य गीतों में-
अधिकार
क्या पूजन
फूल
मैं नीर भरी दुख की बदली

संकलन में—
वर्षा मंगल में- काले बादल
ज्योति पर्व- मेरे दीपक
प्रेम गीत- जो तुम आ जाते

  दीपक पर पतंग

दीपक पर पतंग जलता क्यों
प्रिय की आभा में जीता फिर
दूरी का अभिनय करता क्यों
पागल रे पतंग जलता क्यों

उजियाला जिसका दीपक है

मुझमें भी है वह चिनगारी
अपनी ज्वाला देख अन्य की
ज्वाला पर इतनी ममता क्यों

गिरता कब दीपक दीपक में
तारक में तारक कब घुलता
तेरा ही उन्माद शिखा में
जलता है फिर आकुलता क्यों

पाता जड़ जीवन जीवन से
तम दिन में मिल दिन हो जाता
पर जीवन के आभा के कण
एक सदा भ्रम मे फिरता क्यों

जो तू जलने को पागल हो
आँसू का जल स्नेह बनेगा
धूमहीन निस्पंद जगत में
जल-बुझ यह-वह क्रंदन करता क्यों

9 नवंबर 2007

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