अनुभूति में
महादेवी वर्मा की रचनाएँ-
दीप-गीतों में-
क्या जलने की रीत
क्या न
तुमने दीप बाला
किसी का दीप निष्ठुर हूँ
जब यह दीप थके तब आना
जीवन दीप
तम
में बनकर दीप
दीप
दीप
कहीं सोता है
दीप जगा ले
दीप
तेरा दामिनी
दीप मन
दीप
मेरे जल अकंपित
दीप सी मैं
दीपक अब रजनी जाती रे
दीपक चितेरा
दीपक पर पतंग
बुझे दीपक जला लूँ
मेरे दीपक
यह
मंदिर का दीप
सजनि दीपक बार ले
अन्य गीतों में-
अधिकार
क्या पूजन
फूल
मैं नीर भरी दुख की बदली
संकलन में—
वर्षा
मंगल में- काले बादल
ज्योति
पर्व- मेरे दीपक
प्रेम गीत- जो तुम
आ जाते |
|
दीप-मन
मोम-सा तन घुल चुका अब दीप -सा मन
जल चुका है
विरह के रंगीन क्षण ले
अश्रु के कुछ शेष कण ले,
वरुनियों में उलझ बिखरे स्वप्न के सूखे सुमन ले
खोजने फिर शिथिल पग
निःश्वास-दूत निकल चुका है !
चल पलक हैं निर्निमेषी,
कल्प पल सब तिमिरवेषी,
आज स्पन्दन भी हुई उर के लिए अज्ञातदेशी !
चेतना का स्वर्ण, जलती
वेदना में गल चुका है !
झर चुके तारक-कुसुम जब,
रश्मियों के रजत-पल्लव,
सन्धि में आलोक-तम की क्या नहीं नभ जानता तब,
पार से अज्ञात वासन्ती,
दिवस-रथ चल चुका है।
खोल कर जो दीप के दृग,
,
कह गया 'तम में बढ़ा पग'
देख श्रम-धूमिल उसे करते निशा की साँस जगमग
क्या न आ कहता वही,
'सो, याम अन्तिम ढल चुका है' !
अन्तहीन विभावरी है,
पास अंगारक-तरी है,
तिमिर की तटिनी क्षितिज की कूलरेख डुबा भरी है
शिथिल कर से सुभग सुधि-
पतवार आज बिछल चुका है !
अब कहो सन्देश है क्या ?
और ज्वाल विशेष है क्या?
अग्नि-पथ के पार चन्दन-चाँदनी का देश है क्या
एक इंगित के लिए
शत बार प्राण मचल चुका है !
9
नवंबर 2007 |