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उलझन
ढाल
धूप का ढलता साया
फिर बदल गया

छंदमुक्त में-
और बच्चे खेलते रहे
क्या उसे हक़ था
खारदार झाड़ियाँ
दो खुली आँखें
ये कैसा ख़ौफ़ है

 

उलझन

वह कौन था
जो मिला
ढलती शाम
उलझा उलझा
कुछ बिखरा बिखरा
घबराया सा
मृगलोचन!

अहंकार भरी रात
निराश चौखट
पीठ पर लदा
काला थैला
मैला मैला काला
उघड़े बंद – भारी
भरा ज्ञान
यशध्वनि की लालसा
प्रतिद्वन्द्वियों से घिरा।

बाँटता जाता वो
लुटता जाता
भरता जाता थैला
काला काला
मैला उघड़ा
उलझा उलझा
मृगलोचन!

१८ अक्तूबर २०१० 

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