अनुभूति में
ज़किया ज़ुबैरी की रचनाएँ-
नई रचनाओं
में-
अल्युम्युनियम के प्याले वाले कुत्ते
उलझन
ढाल
धूप का ढलता साया
फिर बदल गया
छंदमुक्त में-
और बच्चे खेलते रहे
क्या उसे हक़ था
खारदार झाड़ियाँ
दो खुली आँखें
ये कैसा ख़ौफ़ है
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और बच्चे खेलते
रहे...
हाँ
वह चारपाई पर पड़ी थी
सूरज की गर्मी
तपते गाल
गर्दन को जकड़े उलझे बाल
शरीर से चिपकी मटियाली साड़ी
बंद पलकें, धँसी आँखें
साँस के बिना चलती नाड़ी।
वह पड़ी थी...
जीवित थी पर जीवन-विहीन।
कोई अज़्म कर लिया था उसने
बाँध लिये थे कुछ अहद
उससे मिलने की तमन्ना
एक हो जाने की ख़्वाहिश।
ढूंढती थीं उसे
सूरज की किरणों में
गर्म व सर्द हवाओं में
गेंद खेलते हुए बच्चों में।
शायद मिल गया था वह।
बदल गया था साड़ी का रंग
सुलझ गए थे बाल भी
ख़ामोश हो गई नाड़ी
चारपाई भी
जाने कहाँ खो गई।
और बच्चे खेलते रहे।
१२
जुलाई २०१० |