अनुभूति में
ज़किया ज़ुबैरी की रचनाएँ-
नई रचनाओं
में-
अल्युम्युनियम के प्याले वाले कुत्ते
उलझन
ढाल
धूप का ढलता साया
फिर बदल गया
छंदमुक्त में-
और बच्चे खेलते रहे
क्या उसे हक़ था
खारदार झाड़ियाँ
दो खुली आँखें
ये कैसा ख़ौफ़ है
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दो खुली आँखें
वो दो आँखें – घूरती
काली काली – गहरी
पलक झपकाते
देखे उन आँखों ने
सपने।
जीने का अन्दाज़
उसका साथ
खेलते बच्चे अँगनाई में
देते काँधा – माँ बाप को
उसका मधुर स्पर्श
ये कैसा देश-प्रेम?
उन्हीं दो आँखों ने
दिया ज्ञान – अक्षरों का
और जुड़ गया उसके साथ
आतंक!
एक धमाका
सिर लटक गया
पीपल के पेड़ पर
दो खुली आँखें
बस देखती रहीं।
१२
जुलाई २०१० |