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  तुम से प्रेरित

तुम से प्रेरित
तुम तक पहुँची।
तुम को पाकर- हूँ क्यों अकेली?

तुम को जाना- तुम को माना
गठबंधन का- सुख पहचाना
हुआ मनोहर जीवन- पर क्यों 
भोलेपन से हूँ अकुलाई?

प्रश्न था मेरे भीतर तब भी
अनुनय विनय से मैं थी झुकती
तुमने आकर तब था थामा
फिर क्यों मैं अब हूँ घबराई?

तुम-सा सुदृढ़ नही है कोई
अन्तर तक अनुभव कर खोई
आलम्बन है- चिरमय सुख है
किन्तु विमुख मै ही तो सोई

जाग उठे मन- पलकें खोले
अन्तर में उपवन है डोले
चढ़ी बेल जब- उगी कोपलें
हरियाली बन मैं भरमाई

१६ दिसंबर २००२

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