जब भी
जब भी
उतरती है
मेरे आँगन में
एक शाम तुम्हारे नाम की
मेरे पहलू मे कुछ महकता है
और बजता है एक सुर
सारे तार झनक उठते है
उन्मादित मन मयूर
अपनी ही धुन में
सारी शाम की रंगीनियाँ अपने पंखों में
समेटे
जीवन की धड़कन
और धड़कन की लय में
स्वयं को ढाले
दुनिया की तमाम किस्से-कहानियों से
परे
एक अलौकिक नृत्य से
मुझे बाँध लेता है
तब मै सोचती हूँ
क्या आत्मसात की यही चरमानुभूति है
- रानी थॉम्पसन |