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जीवन-भोर
काँच सा जीवन सिरहाने रख के सोई
नेह का मोती सजा कर खूब रोई
बीतती है रात सूरज जागता है
लग गले साँसों के जीवन झाँकता है
कल नहीं थी जिसकी आहट आज है वो
एक अदृश्य साथ का अहसास है जो
मन सुदृढ़, अद्वितीय एक आधार सा है
नित नई सुरभित सुबह एक राग सा है
अब नहीं अनमनी सी कोई दिशा है
हर घड़ी हर पल यहाँ उल्लास सा है
अब नहीं सोना न खोना चैन सा है
हर कदम बढ़ते रहो, विश्वास सा है
१ मई २०२४ |