अनुभूति में
रचना श्रीवास्तव की रचनाएँ-
क्षणिकाओं में-
सात क्षणिकाएँ
नई रचनाएँ-
अभिलाषा
इस ठंड में
तीन क्षणिकाएँ
तुम लौट आना
प्यार में डूबे शब्द
बेटियाँ
छंद मुक्त में-
आओ अब लौट चलें
उजाले की किरण
तमसो मा
बेटी होने की खुशी
रोज़ एक कहानी
|
|
तीन क्षणिकाएँ
आवाज़
चहुँ ओर है
शोर बहुत
तभी सुनाई देती नही
हिम खंड के
पिघलने की आवाज़
बंज़र होते खेतों की तड़प
गाँव के
सूखे कुँए की पुकार
धरती में नीचे जाते
जल स्तर की चीख
समीकरण
माँ बाप पलते हैं
चार बच्चे
पर चार बच्चों पर
माँ बाप भारी हैं
ये कलयुग का
समीकरण है
मँहगाई
मँहगाई
सरे आम सब को लूटती है
पर इस की रपट
किसी थाने में
कहाँ लिखी जाती है
इसी लिए शायद
ये बेखौफ बढ़ती जाती है
२६ जनवरी २००९ |