सात क्षणिकाएँ
(एक)
मेरा दर्द पढ़
सूरज बादल मे
छुप के रोता रहा
सुना है उस दिन वहाँ
खारे पानी की बारिश हुई थी
(दो)
चपल बिजली
बादल से नेह लगा बैठी
उसके आगोश में
चमकती इठलाती रही
पर बेवफा वो
बरस गया धरती पर
(तीन)
सूरज को
बुझाने हवा तेजी से आई
खुद झुलस
लू बन गई
(चार)
पूरा चाँद
तारों के संग
बादल की गोद में
लुका छुपी खेल रहा था
खुश था
ये जानते हुए भी की
कल से उसे घटने का दर्द सहना है
उसने हर हाल में
जीना सिख लिया था
(पाँच)
रात के अँधेरे में
नन्हा तारा सिसक रहा था
और धरती पर
एक माँ
(छह)
बर्फ पर बे खौफ
बहुत देर तक चलती रही
वो जानती थी
के क़दमों के निशान
उस को लौटने की दिशा देंगें
बरसते बर्फ के फूलों को
आँचल में समेट
जब वो पलटी
समय की सर्द हवा
सारे निशान मिटा चुकी थी
(सात)
ठंढ से जले हाथों में
चिटके गलों को ढांपे
बर्फ के थपेड़ों से लड़ रही थी
कि हवा का गर्म झोंका
उसे पिता की गोद सी
गुनगुनाहट दे गया
वो जानती थी
ये हवा आई है
उसी गाँव से
जहाँ गांठ लगे ऊन से
बुन रही थी
स्वेटर उस की माँ
१ फरवरी २०१० |