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अनुभूति में पुष्पा भार्गव की रचनाएँ —

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अरुण
तुलसी
निर्झर प्राण
मन
हवा और पानी
हिमपात

संकलन में-
ज्योतिपर्व– दीपों की माला
नया साल–
या वर्ष
होली है– होली (३)

 

निर्झर प्राण

आज निर्झर प्राण मेरे।
थिरकते सखि पुलक उर से
झिलमिले यह साज मेरे।
नेह की उर चाह अविकल
गति चपल, अविराम, अविकल
विहसते से झर रहे
विधु–रश्मि से उल्लास हेरे।
ब्रज–वीथिका गिरि कुंज बन में
वेणु के मृदु, मधुर स्वर में
खो रहे सुन चेतना
घनश्याम की पद–चाप रे
लुट रही सुषमा सुरभि सी
मधुरिमा किसके हृदय की
बह रहा मधु नीर सा बन
बीतते यह पल घनेरे
आज निर्झर प्राण मेरे

८ सितंबर २००३

 

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