दीपों की माला जले
खुशियों के फूल खिले
छुप-छुप कर तारे कहें
रात अँधेरी भी हँसे
दीपों की माला जले
बंदन घर द्वार बँधे
मंगल-घट कलश सजे
जगमग यह रात करे
झिलमिल तारों के तले
आज घड़ी आई, सुखद
जीवन के स्वप्न पले
दीपों की माला जले।
धन के अंबार जुटे
नूपुर झंकार उठे
झूमे मन मस्त मगन
बहता मदहोश पवन
अंबर और धरती पर
हीरों के रत्न जड़े
दीपों की माला जले।
-पुष्पा भार्गव
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