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अनुभूति में पुष्पा भार्गव की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
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तुलसी
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हवा और पानी
हिमपात

संकलन में-
ज्योतिपर्व– दीपों की माला
नया साल–
या वर्ष
होली है– होली (३)
 


 

 

हिमपात

गगन से बिखरी धरा पर
हिम की श्वेत फुहार ऐसे
धवल वसुधा दीखती है
दूध का दरिया हो जैसे
चुपके–चुपके आ गिरे हैं
श्वेत, कोमल, क्षुद्र फोहे
वृक्ष की डालों पर बैठे
जाने किसकी बाट जोहे।
तूलिका किसकी चली फिर
किसने है ये रंग ढाले
पृष्ठभूमि सफेद पर है
कुछ हरे कुछ वृक्ष काले।
शिशिर ने हिम को सजा कर
दे दिया शृंगार ऐसा
प्रकृति का यह रूप विस्मित
दीखता तस्वीर जैसा।

८ सितंबर २००३

 

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