ज़िन्दगी से दूर
इस ज़िन्दगी से दूर, हर लम्हा बदलता जाए है,
जैसे किसी चट्टान से पत्थर फिसलता जाए है।
अपने ग़मों की ओट में यादें छुपा कर रो दिए
घुटता हुआ तन्हा, कफ़स में दम निकलता जाए है।
कोई नहीं अपना रहा जब, हसरतें घुटती रहीं
इन हसरतों के ही सहारे दिल बहलता जाए है।
तपती हुई सी धूप को हम चांदनी समझे रहे
इस गर्मिये-रफ़तार में दिल भी पिघलता जाए है।
जब आज वादा-ए-वफ़ा की दासतां कहने लगे,
ज्यूं ही कहा ‘लफ़्ज़े-वफ़ा’, वो क्यूं संभलता जाए है।
इक फूल बालों में सजाने, खार से उलझे रहे,
वो हैं कि उनका फूल से भी, जिस्म छिलता जाए है।
दौलत जभी आए किसी के प्यार में दीवार बन,
रिश्ता वफ़ा का बेवफ़ाई में बदलता जाए है।
७ अप्रैल २००८ |