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अनुभूति में महावीर शर्मा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
अदा देखो
जब वतन छोड़ा
दिल की ग़म से दोस्ती
भूलकर ना भूल पाए
सोगवारों में
 

अंजुमन में-
अधूरी हसरतें
ग़ज़ल
ज़िन्दगी से दूर
पर्दा हटाया ही कहाँ है?
प्रेम डगर
बुढ़ापा
ये ख़ास दिन

कविताओं में-
दो मौन

संकलन में-
दिये जलाओ- दीप जलते रहे
चराग आँधियों में
मौसम-भावनाओं के मौसम
फागुन के रंग-होली का संदेशा
 

  अदा देखो

अदा देखो, नक़ाबे-चश्म वो कैसे उठाते हैं,
अभी तो पी नहीं फिर भी क़दम क्यों डगमगाते हैं?

ज़रा अंदाज़ तो देखो, न है तलवार हाथों में,
हमारा दिल ज़िबह कर, खून से मेंहदी रचाते हैं।

हमें मंज़ूर है गर, गैर से भी प्यार हो जाए,
कमज़कम सीख जाएँगी कि दिल कैसे लगाते हैं।

सुना है आज वो हम से ख़फ़ा हैं, बेरुख़ी भी है,
नज़र से फिर नज़र हर बार क्यों हम से मिलाते हैं?

हमारी क्या ख़ता है, आज जो ऐसी सज़ा दी है,
ज़रा सा होश आता है मगर फिर भी पिलाते हैं।

ज़रा तिरछी नज़र से आग कुछ ऐसी लगा दी है,
बुझे ना ज़िन्दगी भर, रात दिन दिल को जलाते हैं।

वफ़ा के इम्तहाँ में जान ले ली, ये भी ना देखा
किसी की लाश के पहलू में खंजर भूल जाते हैं।

६ अक्तूबर २००८

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