अनुभूति में
लाल जी वर्मा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में
अकेला
उत्तिष्ठ भारत
मुझमें हुँकार भर दो
मेरे हमसफ़र
चार छोटी कविताएँ
समय चल पड़ा
सुनोगी
क्षणिकाएँ
मुक्तक
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मुक्तक
१
ओस की बूँदें फफक कर रो रहीं
तप रहीं, सूरज किरण से कह रहीं
बादलों की ओट छुप जाओ ज़रा
याद कर लें चाँदनी को हम कहीं।
२
मन करता विस्तृत नभ में
बन बादल मैं छा जाऊँ
बाहों में नीलम घाटी भर
किरणों की गुफा बनाऊँ।
३
क्यों करूँ मैं सृजन जिसका
अंत सदा विनाश
पूर्व या पश्चात मेरे
सदा जिसका ह्रास।
४
आज के फिर बाद कल को
पंचभूत शरीर
मिलेगा मिट्टी समर्पित,
अग्नि, गगन, समीर। |