अनुभूति में
लाल जी वर्मा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में
अकेला
उत्तिष्ठ भारत
मुझमें हुँकार भर दो
मेरे हमसफ़र
चार छोटी कविताएँ
समय चल पड़ा
सुनोगी
क्षणिकाएँ
मुक्तक
|
|
क्षणिकाएँ
माटी औ' परिपाटी
इस देश की "माटी–परिपाटी"
मृत अतीत के पेट से
निकालो खंजर
और भोंक दो
भविष्य की पीठ में
इस देश की माटी–परिपाटी।
अर्थ
बजने दो नूपुर को
गूँगे शब्दों को बोल मिल जाते हैं
डैने फड़फड़ाने दो पक्षियों को
रुकी हवा को गति मिल जाती है।
खून का रंग
समय के तलवों में
चुभा दो काँटा
मैं भी तो देखूँ
उसके खून का
रंग क्या है।
अजनबी चेहरा
आइना क्या झूठ बोलता है?
तो फिर क्यों
आइने के पीछे खड़ा चेहरा
मेरा नहीं है!
एक संदर्भ
अतीत – प्रारब्ध
वर्तमान – विवशता
भविष्य – एक संदर्भ! |