अनुभूति में
हिम्मत मेहता की
रचनाएँ—
हास्य व्यंग्य में—
चाय का निमंत्रण
छंदमुक्त में—
असमंजस क्यों
कितना सुंदर है यह क्षण
कुछ बातें कही नहीं जातीं
तुमसे क्या माँगूँ भगवान
बात एक छोटी सी
भगवान से वार्तालाप
मन में
मेरा संशय
संकलन में-
दिये जलाओ-
दूसरा दीपक |
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कुछ बातें कही नहीं जाती
जब तुम अपने
प्रियतम के
छूने से घायल हो जाती हो
उसके बारे में सोच सोच
ज्यों सपनों में खो जाती हो
उसके चुंबन की चाहत में
तुम चुपके से मुस्काती हो
उसके जाने के पल से तुम
यों भीतर से घबराती हो
मन मुदित प्रफुल्लित हो जाता
तब तुमको कैसा लगता है
कह डालूँ प्रियतम से मैं सब
तब तुमको ऐसा लगता है
क्या फूल कभी कहता है कैसे
पुरवाइया के झोंके में जब
झुक साथी की पंखुड़ियाँ में
वह चुपके से छू जाता है
तब उसको कैसा लगता है?
क्या लहर कभी कहती है कैसे
चंद्र किरण की क्रीड़ा से
झिलमिल उसका अंतर्मन
जब उथल पुथल हो जाता है
तब उसको कैसा लगता है?
क्या भ्रमर कभी कहता है कैसे
जब पराग के मधु से वह
पागल हो चहुँ और वहीं
निर्वश सा मंडराता है
तब उसको कैसा लगता है?
क्या वृक्ष कभी कहता है कैसे
मधुर हवा का झोंका जब
हर एक पत्ते के आँचल से
संगीत मधुर उभराता है
तब उसको कैसा लगता है?
फूल भ्रमर या वृक्ष लहर
बस मन ही मन है भरमाते
कहने की कहाँ ज़रूरत है
कुछ बातें कही नहीं जाती।
१ दिसंबर २००४
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