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बात एक छोटी सी
तब
बात एक छोटी-सी थी
शब्द बहुत थोड़े से
जाने अनजाने में
कह कर तुम चले गए
मन में जब उतरी मेरे
मैंने उसको सम्मान दिया
मेरे अपमानों के सबसे
ऊंचे आसन पर स्थान दिया
बींध गई मन को मेरे
छटपटा गया मेरा अंतर
जीवन के आधे क्षण मैंने
कर दिए उसी को अर्पण कर
कितना अर्सा है बीत गया
दिखाने को मैं मुस्काता हूँ
पर मन में भीतर ही भीतर
ज्वाला में जलता जाता हूँ
अब
फिर एक किरण ऐसी उभरी
जाने मन के किस कोने से
बदला, क्रोध, घुटन दीखे
अपने ही किए, घिनौने से
देरी से आई समझ मुझे
इतना जीवन बरबाद किया
तुम तो कह कर बस चले गए
मैंने अपना ही नाश किया
हमेशा
कब कोई कुछ भी कह दे
अभिमान अगर ना बींध पाए
मन में धारूँ ही नहीं घृणा
तो मधु सिंचित जीवन हो जाए।
१ दिसंबर २००४
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