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दीपावली महोत्सव
२००४
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दीप जले
हर खुशी के
जगमग रोशनी करे
तमस तिमिर डरे
दीप जले इस तरह कि
जलते ही रहे
आँधियों तूफानों में
राह वन मकानों में
स्वर्ण हिरन अगर छले
रावण आतंक करे
फिर भी जो नहीं बुझे
हिम्मत दे तुझे मुझे
साथ साथ चले
दीप जले
और जले इस तरह कि
जलते ही रहे
मन मंदिर बना रहे
सब में सुख घना रहे
कठिन समय संकट में
सुख के भी हर पल में
गैरों में अपनों में
सबके सुख सपनों में
स्नेह अमर पले
दीप जले
और जले इस तरह के
जलते ही रहें
—अश्विन गांधी |
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दूसरा दीपक
माटी का सुंदर सा दीया
हल्की फुल्की रुई से गुँथी बाती
तेल से सिंचित, छोटी सी लौ
करती अठखेलियाँ
हवा के झोकों में
प्रथम दीपक बनेगा स्रोत
जलाता दूसरा दीपक
और फिर बढ़ेगी श़ृंखला यह
और भी आगे
कि हज़ारों दीये जगमगाएँगे
कल सुबह तक
पर भूल न जाना
जलाना एक दीपक और
अपने अंतरमन का
दीया जिसका हो हृदय से गढ़ा
बाती हो बनी निश्छल मन की
असीमित प्रेम का ईंधन उड़ेलो
लौ बना लो प्रेरणा की ज्योत
फिर निज को जहाँ भी पाओगे
चाहे जिसे छू जाओगे
वह पड़ेगा फूट आभा से
तुम्हारी ज्योति की
मन में जागेगा स्वर्ग सा आभास
औ' यह दीवाली रात दिन
मनती चली ही जाएगी
—हिम्मत मेहता
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