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चाय का निमंत्रण
नीरज जी सुन कर आपकी चाय की कथा
मन में छाई है गहरी व्यथा
दोस्त ऐसे भी क्या काम के
जो चाय न पिला सकें बिना दाम के
छोड़िए उन पुराने दोस्तों को
और भाभियों को भूल जाइए,
बेफिक्र होकर आप
हमारे यहाँ चाय पीने आइए
सर्दी की गुनगुनी धूप में
बाल्कनी में बैठ प्याला हाथ में
हिंदी अंग्रेज़ी अख़बार
पढ़ डालना एक साथ में
बस अड़चन है एक छोटी सी
भाभी आपकी है मायके
नाश्ता बनाना मुझको आता नहीं
क्या आप बना सकते हैं साथ साथ चाय के?
और जब बन रहा हो नाश्ता
खड़ा रहने से क्या फायदा?
छोंक डाल देना एक दाल का
और लगा देना थोड़ा आटा बकायदा
अरे हाँ सब्ज़ी तो भूल ही गया
खुशबू खो चुका है फूलों का पराग,
रास्ते में बस लगेगा एक मिनट
ख़रीद लाना गोभी, फूल और साग
और फिक्र ना करना पैसे की ज़रा
अपना तो बना है नाता लंबे अरसे का
बस रखते जाना हिसाब
छोटे मोटे सब कर्जे का
हाँ याद आई एक और बात
बैठने से पहले ज़रा फेर देना एक हाथ
बाल्कनी में सड़क की धूल है भरपूर
झाडू चला देना ज़रा वहाँ
और फिर कमरे का भी साथ साथ
सुंदर सी टेबल लगा लेना अपने से
टीकोज़ी, मिल्क और शुगर पॉट
तब तक मैं नहा कर आ ही जाऊँगा
फिर देखना कैसे हैं अपने ठाट बाट
अच्छा अब जल्दी में हूँ
सान्निध्य के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,
दो तीन रोज़ बाद आ जाना ज़रूर
चाय पिएँगे बैठ कर साथ साथ।
२४ जनवरी २००५
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