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सिंधु–पार
सागर के उस पार
उड़ने की अभिलाषा
संजोने से पहले
पखेरू परख ले अपने डैने
सागर दरिया नहीं
अनमनी–सी उड़ान
पार कर सके जिसे
ना ही बरसाती धारा है
बेफिक्र डूब सको
सूख जाएगी, सावन के बाद
सागर सागर है, अथाह, असीम
जिस पर उड़ने के लिए चाहिए
शक्ति, इच्छा, धैर्य, जीवट
कल्पनाएँ नहीं हो सकती
पंखों का विकल्प
हाँ छोटा पखेरू भी
पा सकता है क्षितिज
इच्छाशक्ति और अभ्यास से
कल्पनाएँ बना सकती हैं मृगतृष्णाएँ
विचारों में अभिलाषाएँ हो सकती हैं साकार
किंतु मज़बूत पंखों की लंबी उड़ान
ही ले जाएगी सिंधु के उस पार
१ मार्च २००५
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