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नव–वर्ष
ओ समय का नव–सूत्र
हाथ लिए आने वाले बटोही
आ जल्दी आ, तेरी राह देखते
आंखें पथराई जाती हैं।
पलकों का पायदान ड्योढी. पर बिछाया है
संकल्पों और कामनाओं का दस्तरखा.न सजाया है
कुछ विशेष चाहो तो बताना
हर सूरत में चाहते हैं तुझे रिझाना।
फिर अंकुरित हुई वे उमंगे, वे चाहतें
जिन्हें पहले तूने यह कहकर
पल्लवित नहीं होने दिया
'ऋतु नहीं आई है अभी'।
चले ना जाना इस बार भी
इन कलियों को मसलकर
बहुत खुशबुओं से वंचित
रह जाएगा हमारा चमन।
अरे ओ निष्ठुर!
क्यों है तू इतना पाषाण हृदय
हम है कि तेरे हर आगमन पर जश्न मनाते हैं
और तू है
मस्त हाथी की चाल चलता चला जाता है
बिन परवाह
कौन पांव तले कुचला जाता है
कौन खौफ़ से खैर मनाता है।
तेरी शान में ग़र गुस्ताखी न हो
एक छोटा–सा मशविरा देता हूं
एक बालक की लेकर दृष्टि
और सांता की लेकर प्रवृत्ति
अगर आएगा तू
वचन देकर कहता हूं
अपने हर फेरे में धरती को
पहले से बेहतर पाएगा तू।
१ मार्च २००५
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