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अनुभूति में हंसराज सिंह वर्मा 'कल्पहंस' की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
आजादी
बचपन की गुहार
नव–वर्ष
मुठ्ठी भर मिट्टी
होली की कामना
शहर और आदमी
सिंधु पार
 

 

होली कामना

आओ, मिल होली मनाएँ
कुछ तेरा रंग मोहे रंगे
कुछ मेरा रंग तोहे चढ़े
तेरा, मेरा, इसका, उसका
सबका रंग, मिल रंगोली सजाएँ

भूलें सब अपना–पराया, भेद–विभेद
मन का हंसा करे किलोल
उड़े क्षितिज तक, डैने खोल
ना कोई बंधन, ना कोई जकड़न
बस निश्छल आलिंगन और स्नेहिल स्पंदन

अंतस की कालिख निखरे
सुशुप्त मानस फिर से विचरे
वैर, वैमनस्य, ईष्र्या, द्वेष के हर रंग पर
प्यार, सौहार्द और बंधुत्व के रंग हावी हो जाएँ
काश! रंगो का अपना वजूद मिट जाए
हर रंग इंद्रधनुष की बस लकीर बन जाए

१ मार्च २००५

 

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