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अनुभूति में धनंजय कुमार की रचनाएँ

अंजुमन में-
क्या इशारे हो गए
दायरा
निगाहों में
पाप और पुण्य
रंग फीका पड़ रहा
रेत का तूफ़ान
रौशनी का तीर
सफ़र का बहाना

  सफ़र का बहाना

मैं सफ़र का इक बहाना चाहता हूँ
खुद से मैं कुछ दूर जाना चाहता हूँ।

बारहा खोकर मुझे तुम पा सको
प्यार में ऐसे जताना चाहता हूँ।

उठ सको तुम आसमाँ तक, इसलिए
बादलों का पुल बनाना चाहता हूँ।

पोंछकर मैं अपने माथे की शिकन
आइने के पार जाना चाहता हूँ।

ये समझ लो दोस्ताने का मज़ाक़
कृष्णा को गीता सुनाना चाहता हूँ।

अपनी हस्ती से मैं गोया एक दिन
उम्र का पर्दा हटाना चाहता हूँ।

मैं हिमालय की नसों को चूसकर
खुद को ही गंगा बनाना चाहता हूँ।

अपनी दुनिया में बसाने के लिए
मैं तुम्हें फिर से बनाना चाहता हूँ।

9 सितंबर 2007

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