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अनुभूति में धनंजय कुमार की रचनाएँ

अंजुमन में-
क्या इशारे हो गए
दायरा
निगाहों में
पाप और पुण्य
रंग फीका पड़ रहा
रेत का तूफ़ान
रौशनी का तीर
सफ़र का बहाना

  रौशनी का तीर

रौशनी का तीर बढ़ता आ रहा है
इक नया चेहरा उभरता जा रहा है।

बीच में दोतरफ़ा आईना लटकता
और वहम दोनों का बढ़ता जा रहा है।

खुल रहा है उस तरफ़ दुनिया का राज
इस तरफ़ इनसां बदलता जा रहा है।

इक पुरानी गाँठ खुलती जा रही है
इक नया चाँद उलझता जा रहा है।

साँस की गरमी भी अब बढ़ने लगी है
बर्फ़ का ये घर पिघलता जा रहा है।

ज़ब्त कर बैठे हैं हम सारे सवाल
इक इरादा था, वो उठकर जा रहा है।

9 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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