रंग फीका पड़ रहा रंग फीका
पड़ रहा हो जब सँवर जाने के बाद
तुम मेरी आगोश में आओ बिखर जाने के बाद।
बद्दुआ मिलती रही भटके हुए
इंसान को
अब सबक देते हैं सब, उसके सुधर जाने के बाद।
जब तुम्हारी ज़िंदगी में था तो
पहचाना नहीं
ढूँढ़ते हो अब उसे, उसके गुज़र जाने के बाद।
तुम इधर के राज़, जब तक हो यहाँ
पर, जान लो
वरना पूछोगे वहीं बातें, उधर जाने के बाद।
खाइयाँ भी ज़िंदगी के काम आ
जाएगी अब
बन गए तैराक सब, तालाब भर जाने के बाद।
बोझ चाँदों का लिए ग़र टूट जाए
ज़िंदगी
ज़िंदगी की याद रह जाएगी मर जाने के बाद।
बोझ यादों का लिए ग़र टूट जाए
ज़िंदगी
ज़िंदगी की याद रह जाएगी मर जाने के बाद।
9 सितंबर 2007 |