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अनुभूति में धनंजय कुमार की रचनाएँ

अंजुमन में-
क्या इशारे हो गए
दायरा
निगाहों में
पाप और पुण्य
रंग फीका पड़ रहा
रेत का तूफ़ान
रौशनी का तीर
सफ़र का बहाना

  दायरा

दायरा अपनी सरज़मीं का बढ़ाए रखना
आसमानों पे अभी धूल उड़ाए रखना।

कुछ अँधेरे दिलो-नज़र में समाए हैं अभी
चाँद तारों को ज़रा देर जलाए रखना।

इन उजालों को अँधेरों से ही एहसास हुआ
राज़ बुझते से दिये का भी छुपाए रखना।

इन किताबों का एक सफ़ा कहीं नहीं मिलता
बात सब कहना, मगर एक छुपाए रखना।

काम अपना ही अधूरा-सा रह गया हो अगर
तो ज़माने को ज़रा दूर बिठाए रखना।

वही आवाज़ मैं सुनने के लिए सोता हूँ
मेरी आँखों में अभी ख़्वाब जगाए रखना।

मेरा चेहरा भी खो गया तेरे चेहरे की तरह
रात है, धुँध है, बस हाथ मिलाए रखना।

9 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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