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अनुभूति में धनंजय कुमार की रचनाएँ

अंजुमन में-
क्या इशारे हो गए
दायरा
निगाहों में
पाप और पुण्य
रंग फीका पड़ रहा
रेत का तूफ़ान
रौशनी का तीर
सफ़र का बहाना

  पाप और पुण्य

पाप और पुण्य दोनों बहाते
रोज़ गंगा नहाते नहाते।

खुल गया लौ का रिश्ता ग्रहन से
एक दीये को जलाते जलाते।

गाँव कितने उजाड़े गए हैं
एक शहर को बसाते बसाते।

ज़िंदगी तो कभी कम न होगी
लुट भी जाओ बचाते बचाते।

कितने वादे किए जा रहा हैं
एक दिलासा दिलाते दिलाते।

खुद बदल-सा गया है, वो मुझको
अपने जैसा बनाते बनाते।

9 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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